होलीका संवाद-गीत
सोलाह साल की सांवरी छोरी, मासूम और थी भोली।
गांव की सूरत, नटखट मूरत, उठ सवेरे बोली ।
“ आई होली रंगो भर कर, देखो सूरज की किरणें,
सोने जैसी हवा में हलचल, आओ खेले होली”।
एक बांका छोरा बोला, करके आंख मिचोली।
“ हाँ निकला इन्द्रधनुष अंबर पे, चलो खेलें होली”।
“ अरे जा-जा, पहले बता तू रंग पवन का
फिर बता रंग खुशबू का, तब खेलेंगे होली”।
गहरी सोच में पड गया छोरा, ये उल्झन कहां से मोल ली?
खुशबू और पवन का रंग, ये तो मुश्किल हो गई पहेली।
सोच सोचकर पाया आखिर, कहाँ है ऐसा रंग कहीं भी,
बिजली-सा कुछ चमक उठा, गया गुलाली आंखे खोली|
बोला,”एक मैं जानू गहरा रंग जो जग में सबसे ऊंचा।
अगर मिला दे रंग जो तेरा, तो प्रेम से खेलें होली।
पवन तो क्या, खुशबू तो क्या, लिख दूं पानी पर भी नाम,
बस, सच्चा रंग तू ले के आना, खेलेंगे हम होली…”
सोलाह सालकी सांवरी छोरी, जरा शरमा के दौडी।
नजर चुराके, नैन झुका के, कुछ – कुछ ऐसा बोली,
“ये कौन सा रंग भर आया, मेरा अंग अंग रंग होली”।
सोलहा सालकी सांवरी छोरी, मस्ती से खेली होली।
तन-मन-धन रंग खेली, झूम के खेली होली।
Beautiful.
Saryu
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Wow..Wonderful poem……….Gita Pandya
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saras kavita…
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Rajuat sunder Ane kavya sunder..beautiful.
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BEAUTIFUL
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hindime bhi aapki kavita khilai hai, great
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Bahot hi khubi se holo samvad ka geet racha..pyarbhara rungin..
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मनभावन शब्दो के रंगसे भरी होली मुबारक.
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Nice Holi Poem .Enjoyed recitation .Thanks. Happy Holi
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सुंदर एक कोमल होलीका गीत।अभिनंदन।
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