‘રાષ્ટ્રદર્પણ’ ઑગષ્ટ ૨૦૨૦માં પ્રકાશિત..
फिर एक बार…
“मेरे वतनके लोग”की आवाज़ ऊठी, फिर एक बार,
कुरबानी ऑर शहीदीकी सरगम गूंजी, फिर एक बार ।
सिंदूर मिटाते हाथ और टूटे हुए कंगनके साथ,
रुधिरसे लथपथ हुई, लाशें चीखी, फिर एक बार ।
अपनोंसे खाई गोली लेकर, सो गये वो वीरकी
तस्वीरकी बारात दिलमें जाग ऊठी फिर एक बार ।
बरसों बीती वह वीरतासे, पूछ रहा रंगीन तिरंगा,
‘कहां, कौन है आज़ाद?’ सवालात हुई, फिर एक बार ।
ये देशकी सरहद पे देखो, न जाने क्यूं धूंआँ ऊठा,
आओ सभी, मिलकर अभी, मनमें कहे फिर एक बार..
“झंडा ऊँचा रहे हमारा, ” संदेश लेकर शानसे,
प्यारे वतनके हमसफर, आगे बढें, फिर एक बार ॥